मुठभेड़ों को लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस को सवालों के घेरे में क्यों लाया जा रहा है ? यह बात सहज बुद्धि की कल्पना से परे है | आख़िर कोई बताए कि क्या हिंसा पर उतारू अपराधियों के गले में पुष्प माला डाल कर स्वागत किया जाएगा ? या उनके विरुद्ध दमनात्मक कार्रवाई की जाएगी ? जब दमनात्मक कार्रवाई की जाती है , तो कुछ लोगों को यही अपराधी जाति या संप्रदाय की वेशभूषा में क्यों नज़र आने लगते हैं ? सच है कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने बीते दस महीनों में प्रतिदिन औसत रूप से चार मुठभेड़ें की हैं | उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी 2018 तक पुलिस ने 1038 मुठभेड़ें की थीं , जिनमें 32 लोग मारे गए थे और 228 घायल हुए थे | इनमें पुलिस के चार जवानों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी | इन मुठभेड़ों में मारे जानेवालों में सबसे ज्यादा लोग पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चार जिलों- शामली, मुज़फ्फरनगर, सहारनपुर और बाग़पत के हैं | सुप्रीम कोर्ट ने 2012 अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा था कि ‘‘सिर्फ इसलिए कि कोई आरोपी खतरनाक अपराधी है, पुलिस को उसे जान से मार देने का अधिकार नहीं मिल जाता | पुलिस का काम आरोपी को गिरफ्तार करना और उन पर मुकदमा चलाना है| ” कोर्ट की बात सही है और उत्तर प्रदेश पुलिस यही कर भी रही है , लेकिन जो क़ानून -व्यवस्था को हाथ में लेकर खुद सुरक्षा बलों पर हमला करे , तो पुलिस को आत्मरक्षा का अधिकार भी संविधान – क़ानून द्वारा प्राप्त है , जो प्रत्येक दृष्टि से उचित भी है | ऐसा ही आत्मरक्षा का अधिकार नागरिकों को भी मिला हुआ है |

मानवाधिकारों की रक्षा हेतु कार्यरत ‘सिटीजन एगेंस्ट हेट’ ग्रुप की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हाल के महीनों में उत्तर प्रदेश में न्यायेतर हत्याएं हुई हैं | इनमें मरने वालों में ज्यादातर दलित और मुसलमान थे | राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्वतंत्र टीमों द्वारा जांच की मांग की गई है | रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश की मुठभेड़ों की 16 घटनाओं और मेवात क्षेत्र के 12 मामलों का ब्योरा है |यह मुठभेड़ 2017-18 में हुई थीं | इसके लिए ‘सिटीजन एगेंस्ट हेट’ ग्रुप राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग [एनएचआरसी] के अध्यक्ष एचएल दत्तू से पिछले दिनों मिला | योगी सरकार के एक साल से अधिक पूरे हो चुके हैं. बीते 12 महीनों में 1200 से अधिक एनकाउंटर हुए हैं. इनमें 50 से अधिक बदमाशों को मार गिराया गया है. हालांकि ऐसा भी नहीं है कि एनकाउंटर की झड़ी लगने से उत्तर प्रदेश के अपराध ग्राफ में कोई बहुत भारी कमी आ गई हो |

उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह कहते हैं, “किसी भी प्रदेश में कुल अपराधों की संख्या कई तरह के अपराधों पर निर्भर करती है, जैसे पॉकेटमारी, रेप, चोरी, डकैती. इनकाउंटर इन सभी तरह के अपराधों के लिए नहीं किए जाते | इसलिए एनकाउंटरों की संख्या को किसी भी राज्य के अपराध ग्राफ से जोड़कर देखना सही नहीं होगा |” इस सिलसिले में पूर्व आईपीएस अधिकारी एस आर दारापुरी का कहना है, “अधिकतर इनकाउंटर फर्जी होते हैं | यह एक सत्य है और बहुत कम इनकाउंटर ही सही होते हैं | जब कोई भी सरकार इस तरह का अभियान चलाती है, तो बड़े अपराधी छिप जाते हैं और छोटे अपराधी ही पुलिस की पकड़ में आते हैं | इसलिए वास्तव में अपराध कम नहीं होता और पुलिस का अभियान सुस्त पड़ते ही बड़े अपराधी सक्रिय हो जाते हैं |”

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक जनवरी 2005 से लेकर 31 अक्टूबर 2017 तक यानी पिछले 12 सालों में देश भर में 1241 फर्जी इनकाउंटर के मामले सामने आए | इनमें से अकेले 455 मामले उत्तर प्रदेश पुलिस के खिलाफ़ थे | इन्हीं 12 सालों में उत्तर प्रदेश पुलिस की हिरासत में 492 लोगों की भी मौत हुई |

विवरण इस प्रकार है – उत्तर प्रदेश – 455, असम- 65, आंध्र प्रदेश- 63, मणिपुर- 63, झारखंड- 58, छत्तीसगढ़- 56, मध्य प्रदेश- 49, तामिलनाडु- 44, दिल्ली- 36, हरियाणा- 35, बिहार- 32, पश्चिम बंगाल- 30, उत्तराखंड- 20, राजस्थान-19, महाराष्ट्र- 19, कर्नाटक- 18, गुजरात- 17, जम्मू-कश्मीर- 17, केरल- 03 और हिमाचल प्रदेश – 02 | इसमें कोई शक नहीं कि आबादी के लिहाज़ से उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है, मगर इसके बावजूद ये आंकड़े बाकी राज्यों के मुकाबले कहीं अधिक हैं | अतः अगर कहीं भी ज़्यादती की शिकायत मिल रही हो ,तो अवश्य ही इन पर रोक लगनी चाहिए | लेकिन यह भी सामने रहे कि बिना दमनात्मक कार्रवाई के अपराधों पर अंकुश नहीं लग सकता | – Dr RP Srivastava, Editor – in – Chief , ”Bharatiya Sanvad”

 

 

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