साहित्य

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं है अपना ये त्योहार नहीं है अपनी ये तो रीत नहीं है अपना ये व्यवहार नहीं धरा ठिठुरती है सर्दी से आकाश में कोहरा गहरा है बाग़ बाज़ारों की सरहद पर सर्द हवा का पहरा है सूना है प्रकृति का आँगन कुछ रंग नहीं , उमंग Read more…