साहित्य

राह पकड़ तू एक चला चल 

  मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला, ‘किस पथ से जाऊँ ?’ असमंजस में है वह भोलाभाला; अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ- ‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला’। पौधे आज बने हैं साकी ले-ले फूलों का प्याला, भरी हुई है जिनके Read more…