साहित्य

अब ” जेबकतरा ‘ सामने है….

मैं किसी कृति की समीक्षा नहीं करता। अनजाने में समीक्षा के पुट मिलने भी लगें, तो समझिए कि वह मेरे मन की बात नहीं। इसकी एक बड़ी वजह है । वह है ‘ सारिका ‘ में एक समीक्षक का एक वाक्य, जो मेरे परम स्नेही एवं मित्र विष्णु प्रभाकर जी Read more…