साहित्य

न किसी की आँख का नूर हूँ : बहादुर शाह ज़फ़र

न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ जो किसी के काम न आ सका मैं वो एक मुश्ते गु़बार हूं मेरा रंग रूप बिगड़ गया, मेरा बख़्त मुझसे बिछड़ गया जो चमन ख़िज़ां में उजड़ गया मैं उसी की फस्ले बहार हूं मैं Read more…