धर्म

सुन शब्द !

सुन शब्द ! तुम मेरे हो मेरे साथ हो जबसे मैंने जन्म लिया तुम मेरे साथ हो साथ रहोगे जैसा वादा करते रहे हो अपना वचन निभाओगे ? सदा के लिए वियुक्त हो जाओगे ? मगर क्या ? मैं जब कवि बनूँगा तब भी मेरा साथ दोगे ? अपना वचन निभाओगे ? Read more…

खासमखास

जो शेष बचेगा !

मैं ‘तुम ‘ हो और तुम ‘ मैं ‘ मैं शरीर, तुम आत्मा बस, यहाँ से जाने के बाद क्या होगा ? मुझे बताकर जाना मैं जानता हूँ कि किसी को पता नहीं फिर भी तुम कुछ न कुछ ज़रूर हो और मैं भी ! जब मेरा मन-मस्तिष्क दूर हो Read more…

सामाजिक सरोकार

हमें गण समाज चाहिए

आज गीत बिकते हैं उनका चीर – हरण होता है बेचे जाते हैं सरेराह लिखने से पहले बिक जाते हैं ! बिक जाते हैं गीतकार गीत लिखने से पहले पेशे का पेशा बदल गई दुनिया कहाँ से कहाँ आ गए हम ? तितलियाँ अब उड़ती नहीं बस, टाँकी जाती हैं Read more…

देश-देशांतर

ओ, ताना रिक्शा ! तू गया, सामंतवाद क्यों नहीं ले गया… अलविदा

लगभग 35 वर्ष पहले जब मैं कोलकाता गया था बीबीसी के एक चुनावी कवरेज ( सर्वे ) का हिस्सा बनने, तब तक यह महाशहर अपने असली वजूद में था। उस वक्त कहा जाता था कि जिसने हाथ रिक्शा नहीं देखा और उस पर सवारी नहीं की, उसने कोलकाता का असली Read more…

खासमखास

वो तो मेरा नहीं !

वे चकित होकर बोलीं – ” वो तो मेरा नहीं मैंने तो जमा किए थे सिर्फ़ पांच सौ रुपए और आप कहते हैं छह सौ दस लो।” बैंक का क्लर्क हुआ परेशान शायद उसने नहीं देखा था ऐसा इन्सान कहने लगा – ” मां जी, ये एक सौ दस रुपए Read more…

धर्म

शब्द श्री 

शब्द श्री ने दर्शन दिए मेरी श्रद्धा – भक्ति से प्रसन्न हुए कहा – मैं चाहता हूं कुछ बताऊं तुमको मैं कौन हूं ? क्या हूं ? जानोगे ? मैं थोड़ा विस्मय में पड़ गया सोचने लगा – भगवान, इस तरह, इस विशेष अंदाज़ में जो कह रहे हैं अवश्य Read more…

सामाजिक सरोकार

” हम एक हैं ” और रहेंगे

आज देश के पहले दलित आई ए एस डॉक्टर माता प्रसाद का जन्मदिन है … शत शत नमन।11 अक्तूबर 1925 को उनका जन्म जौनपुर, उत्तर प्रदेश में जगत रूप राम के यहां हुआ। कुछ संदर्भों में उनका 1924 में पैदा होना बताया गया है, जो गलत है।  दलित साहित्य के Read more…

सामाजिक सरोकार

दो कविताएं —

( 1 ) वर्षा का गांव …………… जैसलमेर से आगे मरुस्थल का गांव तपती दुपहरी ठहरते नहीं पांव दूरस्थ दिशा में रेतीले खंडहर में गहराता पतझड़ स्थल मरुस्थल वर्षा का गांव। ….. वाईपेन से आगे जलनिधि की छांव उगते पहाड़ गिरती बर्फ प्रचंड ग्रीष्म नौका का पिघलना तुषार – कण Read more…

धर्म

हे राम !

हे राम ! सर्वशक्तिमान दयावान सर्वाधार निर्विकार अजर अमर जीवंत अनंत न्यायकारी सर्वसत्ताधारी सर्वव्यापक व्यथानाशक ” ऐसे घट – घट राम हैं दुनिया जानत नाहिं “ क्या कबीर ने जाना तुलसी का मर्म ? सच है – मेरे राम अवर्णनीय हैं असीम हैं आदि हैं अंत हैं अगणनीय इतने कि… Read more…

सामाजिक सरोकार

” स्पर्शी ” का स्नेहिल स्पर्श

.” स्पर्शी ” का दूसरा पुष्प हस्तगत हुआ। यह साहित्यिक पत्रिका है, जिसके संपादक हैं अतुल कुमार शर्मा और सह संपादक हैं दिलीप कुमार पांडेय। दोनों प्रतिभावान कवि भी हैं। पत्रिका उत्तर प्रदेश के संभल से प्रकाशित होती है। पत्रिका में इसकी अवधि का उल्लेख नहीं। संभवतः वार्षिक है, लेकिन Read more…

अतिथि लेखक/पत्रकार

हम मरि जाब, हमरे लिये कोऊ कुछू नाही करत हय !

एक दिन अवधी महारानी ने शोकाकुल होकर मुझसे कहा, ” तू लोग काहे हमार दुरगत करत जात हव ? हमरे लिये कोऊ कुछू नाही करत हय … ऐसन मा हमरे मरैम केत्ती देर हय।” मैंने कहा कि आपने अच्छा किया। हमें ध्यान दिलाया। आप ठीक कहती हैं। हम लोगों ने Read more…

सामाजिक सरोकार

मेरे शब्द जब सुनना …

मेरे शब्द जब सुनना … …………………….. एक निवेदन… एक आग्रह… मेरे शब्द जब सुनना तो ज़रूर आना कविता बनके आएं या नज्म गीत बनके आएं या ग़ज़ल कहानी बनके आएं या उपन्यास ख़बर बनके आएं या फीचर पत्र बनके आएं या अग्रलेख मधुरस घोलें या गरल बिखेरें उस हाल में Read more…

सामाजिक सरोकार

शब्द भर जीवन

शब्द भर जीवन ………………….. ये शब्द… चलते हैं मेरे जीवन के साथ – साथ जीवन भर निरंतर इक आशा लिए ! रीतने की प्रक्रिया में स्थानापन्न बनते हुए ये शब्द… खो जाते किसी अदृश्य जगत में अपने ” जोम ” में नैमित्तिक वास स्थान की ओर अपनी दुनिया में … Read more…

सामाजिक सरोकार

मैं तो था ही !

मैं तो था ही ! ……………….. अब लोग पूछते हैं क्या कुछ पढ़ा – लिखा है ? क्या बताऊं, मैं उन्हें जो पढ़ा वह लिखा नहीं जो लिखा वह पढ़ा नहीं ! अब कुछ नहीं है मेरे पास सिवाय यादों, वादों और बातों के – संग हैं जीवन के इंद्रधनुषी Read more…

धर्म

मैं कभी नहीं लिख पाऊंगा वह कविता…!

  . मैं सोचता हूं – मैं कभी नहीं लिख पाऊंगा वह कविता जो वृक्ष के सदृश है जिसके भूखे अधर लपलपा रहे धरा – स्वेदन – पान को आतुर वह वृक्ष जो दिन और रात देखता है ईश्वर को ! गिराता है अपने शस्त्र – रूप पत्ते इबादत के Read more…