साहित्य

दो कविताएं

( 1 ) तारीख़ ……… हर दिन की नई सुबह नई तारीख़ लाती थी नई आशाओं के साथ सुबह होते ही अपना चेहरा दिखाती थी कभी कैलेंडर तो कभी अख़बार में टी वी और रेडियो में सुबह से देर रात तक वही तारीख़ … परत दर परत ….. एक दिन Read more…

खासमखास

वो तो मेरा नहीं !

वे चकित होकर बोलीं – ” वो तो मेरा नहीं मैंने तो जमा किए थे सिर्फ़ पांच सौ रुपए और आप कहते हैं छह सौ दस लो।” बैंक का क्लर्क हुआ परेशान शायद उसने नहीं देखा था ऐसा इन्सान कहने लगा – ” मां जी, ये एक सौ दस रुपए Read more…

देश-देशांतर

हाशिमपुरा – जो लाश गिरी वो मेरी ही तो थी …

दंगे में जो लाश गिरी वो मेरी ही तो थी, हम हिंदू मुस्लिम का बहाना कब तलक बनाते ? – अनथक पूर्व पुलिस अफसर और हिंदी साहित्यकार विभूति नारायण राय की पुस्तक ” हाशिमपुरा 22 मई ” पढ़ने को मिली। इस पुस्तक पर सबसे ऊपर लगभग 36 प्वाइंट में यह Read more…

साहित्य

एक कुष्ठचर्मी, तो दूसरा केशविहीन

जब कुष्ठचर्मी बना श्वेतचर्मी बैठ गया विश्व – सिंहासन पर दुनिया के मशहूर ट्रेड टावर पर  ऊंटों से भरी वादी लिए हांकता है दुनिया को लाल ऊंटों के बल पर झूठे अहं का शिकार होकर यह दुष्टधर्मी ! ….. जब केशविहीन  बना केशअहीन बैठ गया सत्ता -में सिंहासन पर दृष्टिवानों Read more…

सामाजिक सरोकार

” हम एक हैं ” और रहेंगे

आज देश के पहले दलित आई ए एस डॉक्टर माता प्रसाद का जन्मदिन है … शत शत नमन।11 अक्तूबर 1925 को उनका जन्म जौनपुर, उत्तर प्रदेश में जगत रूप राम के यहां हुआ। कुछ संदर्भों में उनका 1924 में पैदा होना बताया गया है, जो गलत है।  दलित साहित्य के Read more…

सामाजिक सरोकार

दो कविताएं —

( 1 ) वर्षा का गांव …………… जैसलमेर से आगे मरुस्थल का गांव तपती दुपहरी ठहरते नहीं पांव दूरस्थ दिशा में रेतीले खंडहर में गहराता पतझड़ स्थल मरुस्थल वर्षा का गांव। ….. वाईपेन से आगे जलनिधि की छांव उगते पहाड़ गिरती बर्फ प्रचंड ग्रीष्म नौका का पिघलना तुषार – कण Read more…

धर्म

पिताश्री का गुलाब

अब भी खूब खिलता है मेरे आंगन का लाल गुलाब याद दिलाता है पिताश्री का जो इसके बानी थे और मेरे भी… उस समय मैं नहीं था जब उन्होंने लगाई थी दशकों पहले इसकी कलम गुलाब था आज भी है सदा सर्वदा रहेगा क्योंकि गुलाब के बिना जीवन नहीं यह Read more…

धर्म

हे राम !

हे राम ! सर्वशक्तिमान दयावान सर्वाधार निर्विकार अजर अमर जीवंत अनंत न्यायकारी सर्वसत्ताधारी सर्वव्यापक व्यथानाशक ” ऐसे घट – घट राम हैं दुनिया जानत नाहिं “ क्या कबीर ने जाना तुलसी का मर्म ? सच है – मेरे राम अवर्णनीय हैं असीम हैं आदि हैं अंत हैं अगणनीय इतने कि… Read more…

सामाजिक सरोकार

राष्ट्रपिता पर नई दृष्टि “कितने गांधी ?”

” मुझे दुनिया को कोई नई चीज़ नहीं सिखानी है। सत्य और अहिंसा अनादि काल से चले आए हैं। – मो. क. गांधी ” कितने गांधी ” को पढ़ते हुए गांधी का यह सत्य – वचन याद आया, जो उन्होंने An experiment with theTruth में प्रकट किया है। फिर यह Read more…

सामाजिक सरोकार

शब्द – शब्द

शब्द क्या है ? अंदर का बंधन अनहद नाद दिलों तक पहुंचने का तार रूह को तर – बतर का औज़ार झंकृत करता शब्दकार हक़ीक़त की परछाई बनाकर एक बहाना बनाकर कोई कितना भी ऊपर चढ़ जाए शब्द नहीं तो काठी नहीं जिस पर टिके जो बिन शब्दों के विचारों Read more…

अतिथि लेखक/पत्रकार

हम मरि जाब, हमरे लिये कोऊ कुछू नाही करत हय !

एक दिन अवधी महारानी ने शोकाकुल होकर मुझसे कहा, ” तू लोग काहे हमार दुरगत करत जात हव ? हमरे लिये कोऊ कुछू नाही करत हय … ऐसन मा हमरे मरैम केत्ती देर हय।” मैंने कहा कि आपने अच्छा किया। हमें ध्यान दिलाया। आप ठीक कहती हैं। हम लोगों ने Read more…

सामाजिक सरोकार

शब्द – परिधान

शब्द अपने भाव और अर्थ कैसे बदल लेते हैं ? कहां से चलकर कहां पहुंच जाते हैं ? इसी केंद्रीय विषय पर पेश हैं दो भिन्न शिल्प सौंदर्य में दो काव्य रचनाएं – ( 1 ) शब्द – परिधान ………………… कितना सुंदर मुखड़ा तेरा कितनी बेहतर भाषा है जैसा सोचो Read more…

सामाजिक सरोकार

मैं तो था ही !

मैं तो था ही ! ……………….. अब लोग पूछते हैं क्या कुछ पढ़ा – लिखा है ? क्या बताऊं, मैं उन्हें जो पढ़ा वह लिखा नहीं जो लिखा वह पढ़ा नहीं ! अब कुछ नहीं है मेरे पास सिवाय यादों, वादों और बातों के – संग हैं जीवन के इंद्रधनुषी Read more…

धर्म

मैं कभी नहीं लिख पाऊंगा वह कविता…!

  . मैं सोचता हूं – मैं कभी नहीं लिख पाऊंगा वह कविता जो वृक्ष के सदृश है जिसके भूखे अधर लपलपा रहे धरा – स्वेदन – पान को आतुर वह वृक्ष जो दिन और रात देखता है ईश्वर को ! गिराता है अपने शस्त्र – रूप पत्ते इबादत के Read more…

सामाजिक सरोकार

कुंठित मानसिकता के पैरोकार !

जो लोग विष्णु प्रभाकर जी पर पानी पी – पीकर यह आरोप लगाते हैं कि वे दूसरों की कद्र नहीं करते थे और अपनी सफलता तले सबको रौंदते थे, वे सभी आरोपी कुंठित हैं और हीन भावना के शिकार हैं। मैं उनको बहुत क़रीब से जानता – समझता हूं। उनको Read more…