खबरनामा

बलरामपुर को ” पांचों पांडवों ” की याद कब आएगी ?

अमृत महोत्सव चल रहा था , चल रहा है । आमजन में देश की स्वाधीनता के लिए जी तोड़ कोशिश करनेवाले अमर सेनानियों के प्रति बढ़चढ़ कर कृतज्ञता का भाव पाया जाना स्वाभाविक है। अफ़सोस की बात है कि बलरामपुर के अमर शहीदों को सही अर्थों में सम्मान दिया जाना Read more…

खासमखास

खुशक़िस्मत दुलरू

ये हैं दुलरू … अब साढ़े तीन साल के हो गए हैं। अब रह रहे हैं भारत – नेपाल सीमा के पास हिमालय की शैवालिक पर्वत मालाओं के लगभग अथ स्थान पर , उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में खैरमान डैम के पास। इनकी दास्तान बड़ी हृदय विदारक है! लेकिन हैं Read more…

देवीपाटन मंडल

” मेरा बलरामपुर ” – हम सबका बलरामपुर

बलरामपुर की है अपनी निराली पहचान, कोई शख़्स नहीं इसकी अज़मत से अनजान, कितनी तारीफ़ करूं मैं इस महबूबतरीन की, उर्फ़ – ए आम पर छाई है जिसकी अमिट दास्तान। – अनथक अपने आबाई शहर बलरामपुर को और क़रीब से जानने के लिए एमेजॉन से मंगाई पुस्तक ” मेरा बलरामपुर” Read more…

खासमखास

कितना सार्थक सुरंजन का सुचिंतन ?

भाई डॉक्टर राम शरण गौड़ अग्रणी लेखक होने के साथ व्यवहार – कुशलता के भी अग्रदूत सदृश हैं। वे जब हिंदी अकादमी दिल्ली के सचिव थे , मुझे अकादमी के आयोजनों में याद किया करते थे। साथ ही स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले में आयोजित होनेवाले कवि सम्मेलन Read more…

खासमखास

हिंदी – हमारी मातृभाषा/ राष्ट्रभाषा 

राष्ट्रभाषा हिंदी का रह – रहकर पीड़ा की तरह विरोध बेहद चिंतनीय और निंदनीय है | हिंदी को रोमन लिपि में लिखना अनुचित है ? वास्तव में हिंदी भाषा और इसकी देवनागरी लिपि का कोई जवाब नहीं ! ऐसी निहायत उम्दा लिपि और भाषा दूसरी नहीं , जो पूरे भारत Read more…

खासमखास

फिर सठिया जाना…!

कहते हैं,सठियाने का आनंद ही कुछ और है। हमारे देश में इसकी एक परंपरा – सी है और एक उपलब्धि – सी भी। कोई कहे या न कहे, महसूस करे या न करे, लेकिन उम्र पाकर वह सठियाता ज़रूर है। मैं भी सठिया गया हूं, तभी इस विषय पर कुछ Read more…

खासमखास

प्रेमचंद क्या थे सचमुच ?

31 जुलाई 1880 ई. को महान साहित्यकार प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के निकट लमही नामक ग्राम में हुआ था। उनकी साहित्य सेवा अद्वितीय है और उनकी भारतीयता कालजयी ! कुछ लोग उन्हें अपने कृत्रिम ख़ानों में फिट करने की कोशिश करते हैं , जो बेमानी है। उनका साहित्य विराट है। Read more…

खासमखास

अफनासी निकीतीन – भारत आनेवाले पहले रूसी की अजब दास्तान

भारत के प्राचीन काल से ही अन्य देशों से संपर्क रहे हैं। ऐतिहासिक तौर पर , बौद्ध भिक्षु और व्यापारी समुद्रों, रेगिस्तानों और पर्वतों को पारकर आते – जाते रहे हैं। लेकिन रोमांचकारी यात्राओं के विवरण बहुत कम उपलब्ध होते हैं। हमारे देश में रूस से जो पहला पर्यटक भारत Read more…

साहित्य

चलते जाइए, जहां ले जाएं ये हवाएं …..

मैं सूखा पत्ता हूं मेरा व्यवहार इसी के सदृश है! मैं वह पत्ता हूं ज्ञानलोक का जो हवाओं के संग चलता है या शायद मजबूर है चलने को जहां चाहें वे ले जाएं यही खोज है मेरे सत्य की यथार्थ है मेरे जीवन का इसके आगे हर कोशिश व्यर्थ है Read more…

सामाजिक सरोकार

सच है कभी ‘अनाम मरता नहीं ‘

उस समय के उदीयमान कवि / कहानीकार वीरेंद्र सिंह गूंबर मेरे यहां पधारे। दो पुस्तकें मुझे भेंट स्वरूप दीं, इस आग्रह के साथ कि इनकी समीक्षा लिख दें। मुझे उन्होंने बताया कि इनसे पहले उनकी दो पुस्तकें छप चुकी हैं। 1999 में उनका काव्य संग्रह ‘निमंत्रण’ और 2002 में कहानी Read more…