साहित्य

बलरामपुर की सुनहरी सरज़मीं की ख़ुशबू है चाचा बेकल की साहित्य – सर्जना 

सुनहरी सरज़मीं मेरी, रुपहला आसमाँ मेरा मगर अब तक नहीं समझा, ठिकाना है कहाँ मेरा , किसी बस्ती को जब जलते हुए देखा तो ये सोचा मैं ख़ुद ही जल रहा हूँ और फैला है धुआँ मेरा | ये भावपूर्ण शब्द हैं पद्मश्री बेकल उत्साही के , जिनके कलाम का Read more…