साहित्य

प्रलय-गाण्डीव की टंकार हूँ मैं  

सलिल–कण हूँ कि पारावार हूँ मैं? स्वयं छाया, स्वयं आभार हूँ मैं । बँधा हूँ स्वप्न है, लधु वृत्त में हूँ नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं । समाना चाहती जो बीन–उर में विकल वह शून्य की झंकार हूँ मैं । भटकता खोजता हूँ ज्योति तम में , सुना Read more…