साहित्य

आओ, अपने मन को टोवें !

व्यर्थ देह के संग मन की भी निर्धनता का बोझ न ढोवें। जाति पातियों में बहु बट कर सामाजिक जीवन संकट वर, स्वार्थ लिप्त रह, सर्व श्रेय के पथ में हम मत काँटे बोवें! उजड़ गया घर द्वार अचानक रहा भाग्य का खेल भयानक बीत गयी जो बीत गयी, हम Read more…