सामाजिक सरोकार

शब्द – परिधान

शब्द अपने भाव और अर्थ कैसे बदल लेते हैं ? कहां से चलकर कहां पहुंच जाते हैं ? इसी केंद्रीय विषय पर पेश हैं दो भिन्न शिल्प सौंदर्य में दो काव्य रचनाएं – ( 1 ) शब्द – परिधान ………………… कितना सुंदर मुखड़ा तेरा कितनी बेहतर भाषा है जैसा सोचो Read more…

धर्म

मैं कभी नहीं लिख पाऊंगा वह कविता…!

……………….. मैं सोचता हूं – मैं कभी नहीं लिख पाऊंगा वह कविता जो वृक्ष के सदृश है जिसके भूखे अधर लपलपा रहे धरा – स्वेदन – पान को आतुर वह वृक्ष जो दिन और रात देखता है ईश्वर को ! गिराता है अपने शस्त्र – रूप पत्ते इबादत के निमित्त Read more…

खासमखास

मेरा अस्तित्व

मेरा अस्तित्व……..……… आज साठ पूरा करने के क़रीब पहुंचकर देखा अपने अस्तित्व को अपने आपको अपने में खोकर। अख़बार के मानिंद तुड़े – मुड़े अपने अस्तित्व को जिसके पीछे पड़ा रहा दिनभर शाम के ढलते दियारे को लेकर अब कहां फुरसत कि अपने पन्ने को सीधा करूं ? पढूं, वह Read more…

साहित्य

तोड़ दो बंधन [ कविता ] – स्वामी विवेकानंद

विश्वगुरु स्वामी विवेकानंद का अमेरिका प्रवास के समय हेल परिवार से बहुत स्नेहपूर्ण संबंध रहा। हेल दंपत्ति की दो पुत्रियों – मैरी हेल और हैरियट हेल और दो भतीजियों – ईसावेल मैकिंडले और हैरियट मैकिंडले को विश्वगुरु से सगे बड़े भाई सा स्नेहिल प्यार मिला। प्रस्तुत कविता उन्होंने इन्हीं बहनों Read more…

साहित्य

दिव्य सुवास 

ओ शांतनु ! सुवास के प्रेमी परिहास के प्रेमी क्या तूने पाया अनैसर्गिक गंध ? सत्यवती को पाकर सत्या को लाकर क्या तूने पाया दिव्यता का सुवास ? ओ शांतनु ! शांति – लाभ कर चर्चित हस्त – स्पर्श के हर्षित क्या तूने किया शांति का विलोम ? अपने का Read more…