साहित्य

अब मुझे क़ुरबां अपनी ही फ़िक्र है

अब मुझे क़ुरबां अपनी ही फ़िक्र है , मैं भला किसी को कैसे बुरा कहूँ | मगर नहीं वजूद मेरा झुका हुआ , मैं भला उसको कैसे बेसुरा कहूँ | अब नहीं मुझे किसी का ख़ौफ़ रहा , क्या कहूँ , किसको यूँ आमिरा कहूँ | तेरी पारसाई क्यों न चली Read more…