साहित्य
सुआंव के पुल पर : पी. पयाम
घटा सावन की भीगी रात बारह बजनेवाला था अँधेरा भी भरी बरसात पाकर आज सोया था समन्दर अपनी बाँहों में समेटे सुआंव ठहरा था मैं पुल पर या किसी जलयान पर मह्वे तमाशा था — जवां सरबार मौजें खेलती थीं खिलखिलाती थीं ख़ामोशी में रह – रहके झांझें बज – Read more…