साहित्य
मगर झोपड़ी खड़ी नहीं
रात में ही आ गए थे मगर सुबह हुई नहीं मकान की तलाश मगर झोपड़ी खड़ी नहीं | काश, किस क़दर मुंहतकी निगाह से देखता रहूँ क्यों निर्झर पंखुरियों में गंदगी तो सनी नहीं | पुरलुत्फ़ सरगोशियों की टोह में चला था जुगनू कहीं सायाफ़िगन न हुआ , कहीं रोशनी Read more…