साहित्य

बाज़ीचा-ए- अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे  

समीक्षा त्रिपाठी जी की एक पोस्ट से प्रेरित होकर मशहूर शायर ग़ालिब की इस सुप्रसिद्ध रचना के भावों को निरूपित करने का प्रयास ——- बाज़ीचा-ए- अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे | इक खेल है औरंग-ए-सुलैमां मिरे नज़दीक इक बात है एजाज़-ए- मसीहा मिरे आगे | जुज़ Read more…