साहित्य
त्रिविष्टप और अर्धनारीश्वर
कभी नहीं चाहा था वह बदनुमा त्रिविष्टप शील – शुचिता, मर्यादा रहित उच्छृंखल, उद्दंड विलासी समाज त्रिविष्टप सरीखा जो स्वर्ग होकर भी नरक बना ! आर्यावर्त की पांचाली संस्कृति का मूक गवाह बना ! शायद इसीलिए त्रिपुरारी शिव ने न त्रिविष्टप रीति को पसंद किया न ही आर्यावर्त कुनीति को Read more…